अच्छी खबर: 1 अप्रैल से स्कूलों में जॉय फॉर लर्निंग

एक माह बस्ते से मुक्ति, बिना किताब पढ़ाएंगे शिक्षक

1 अप्रैल से शुरू हो रहे नए शिक्षा सत्र मेंं विद्यार्थी बस्ते के बोझ से मुक्त रहेंगे। एक माह तक स्कूलों में शिक्षक किताबों की जगह उन्हें विभिन्न गतिविधियों द्वारा पढऩे के लिए प्रेरित करेंगे। शिक्षा का सेशन असल में जुलाई से शुरू होगा। विद्यार्थियों को इस बार उसी दौरान किताबें मिल सकेंगी।

सर्वविदित है कि मिडिल स्कूल तक का नया शिक्षा सत्र अप्रैल माह से शुरू हो जाता है। परीक्षा के तुरंत बाद स्कूल शुरू होने पर अधिकांश विद्यार्थियों की रूचि पढऩे में कम ही रहती है। इसेे देखते हुए शिक्षा विभाग जॉय फॉर लर्निंग अभियान शुरू कर रहा है।

इसके लिए सभी शिक्षकों को विशेष ट्रेनिंग दी गई है। जिसके तहत विद्यार्थियों को बिना किताब-कापियों के स्कूल जाना होगा। शिक्षक भी उन्हें कोर्स की जगह 30 दिन तक खेलों के जरिए शिक्षा देने का प्रयास करेंगे। तय समय में गतिविधियां पूरी नहीं होने पर 15 जून से पून: स्कूल प्रारंभ होने पर उसे 30 जून तक पूरी करवाने के बाद 1 जुलाई से पढ़ाने का दौर शुरू होगा।

कोर्स के लिए जुगाड़…

हर वर्ष शिक्षा सत्र शुरू होते ही शासकीय स्कूलों में कोर्स की किताबें वितरित कर दी जाती थीं। इस बार शासन ने अब तक किताबें नहीं भेजीं। इस पर शिक्षा विभाग ने शिक्षकों को मौखिक आदेश दिया है कि पास हो चुके बच्चों से किताबं लेकर नए विद्यार्थियों को दे दें। हालांकि अधिकारी जून में स्कूल शुरू होने पर किताबें देने की बात कर रहे है।

मूल्यांकन करं या पढ़ाएं

  •  शिक्षकों ने बताया कि अधिकांश विद्यार्थियों कि किताबें फट गई हंै, कैसे वितरित करें।
  •  परीक्षा के बाद अधिकांश विद्यार्थी घूमने या रिश्तेदारों के यहां जाते हंै, कहां से लाएं।
  •  भीषण गर्मी में परिजनों की भी बच्चों को भेजने में रूचि नहीं होती, उन्हें कैसे लाएं।
  •  १०वीं एवं १२वीं के परीक्षा के मूल्यांकन करे या स्कूलों में विद्यार्थियों को सिखाने जाएं।
    इनका कहना
    बच्चों को विभिन्न तरीके से पढऩे के लिए मानसिक रूप से तैयार किया जा सकता है। जॉय फॉर लर्निंग इसीलिए शुरू किया जा रहा है। किताबों के संबंध में भी कहा है कि जिनका कोर्स अच्छा हो वह लेकर दूसरे बच्चों को दें। विभाग से ऐसा ही आदेश है।
    – संजय गोयल, जिला शिक्षा अधिकारी

इधर… विभाग खुद अपडेट नहीं

शिक्षा विभाग के अफसर भले ही विद्यार्थियों को नए तरीके से शिक्षा देने के लिए शिक्षकों को अपडेट करने का दावा कर रहे हंै। हकीकत में उनके कार्यालय पर लगा बोर्ड ही उन पर सवाल खड़े कर रहा है।

सब जानते है मुकेश शुक्ल करीब एक दशक पहले जिपं सीईओ होने पर मुख्य कार्यपालन अधिकारी एवं जिला परियोजना संचालक रहे हैं उनके बाद कई सीईओ आ गए और वर्तमान में भी नीलेश पारिख सीईओ हंै।

बावजूद यहां लगे बोर्ड पर शुक्ल का ही नाम दर्ज है। ऐसा ही हाल कलेक्टर का है। विभाग के रिकॉर्ड में शायद अब तक कलेक्टर मनीष सिंह ही है जबकि चार माह पहले ही सिंह का ट्रांसफर हो गया है।

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